प्रस्तुत पुस्तक में संहिताओं व मूल ग्रंथों को आधर माना गया है। विभिन्न जन्म कुंडलियों के फलादेश करते समय अनेक प्रश्न लेखक के सामने आए। इन प्रश्नों ने लेखक को फलित ज्योतिष के प्रति नए दृष्किोण से देखने को विवश किया। परंपरा ही मौलिकता की जननी है। आधुनिक युग के परिप्रेक्ष्य में मनोवैज्ञानिक व विज्ञान की धराओं ने लेखक को प्रभावित किया है। जीवन की समग्रता का इसमें समावेश है। इस ग्रंथ में परंपरा पुनर्मूल्यांकन व मौलिकता का सामंजस्य है, वस्तुतः यह सुधीजनों के चिंतन का विषय है।"